नेपाल में पिछले कुछ दिनों से भ्रष्टाचार और nepotism (वंशवाद) के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त प्रदर्शन हो रहे थे। इन प्रदर्शनों ने इतना उग्र रूप ले लिया कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफ़ा देना पड़ा। राजधानी काठमांडू सड़कों पर धुएँ, आग और नारों से गूंज उठी।
घटनाक्रम
👉 इस्तीफ़े की घोषणा
प्रधानमंत्री ओली ने मंगलवार को सभी राजनीतिक दलों की बैठक के बाद कहा—“हिंसा देश के हित में नहीं है।” लेकिन जन-आक्रोश के दबाव में उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
👉 क्यों भड़के प्रदर्शन?
सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप
वंशवाद (नेताओं के बच्चों को अनुचित लाभ देने का आरोप)
सोशल मीडिया बैन (Facebook, X, YouTube) ने गुस्से को और बढ़ाया
👉 प्रदर्शनकारियों की मांग
“भ्रष्टाचार बंद करो, सोशल मीडिया नहीं”
“युवाओं का भविष्य सुरक्षित करो”
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार
हिंसा और तबाही
संसद और सरकारी भवनों में आगज़नी
पीएम ओली और राष्ट्रपति पौडेल के निजी घरों पर हमले
ट्रिब्हुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट बंद
19 लोगों की मौत, 100 से अधिक घायल
राजनीतिक संकट
ओली के इस्तीफ़े से सरकार का पतन तो नहीं हुआ है, लेकिन राजनीतिक भविष्य अनिश्चित है। राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल पर भी इस्तीफ़े का दबाव है।
अब चर्चा है कि नेपाल आर्मी अस्थायी रूप से सत्ता संभाल सकती है—जैसा श्रीलंका (2022) और बांग्लादेश (2024) में हुआ था।
जनता की आवाज़
एक युवा प्रदर्शनकारी, रॉबिन श्रेष्ठा, ने कहा: “हम अपने भविष्य के लिए खड़े हैं। हमें एक भ्रष्टाचार-मुक्त नेपाल चाहिए ताकि हर कोई शिक्षा, स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य पा सके।”
निष्कर्ष
नेपाल इस समय एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। भ्रष्टाचार और वंशवाद से तंग आ चुकी युवा पीढ़ी अब बदलाव की मांग कर रही है। सवाल यही है—क्या यह आंदोलन नेपाल में एक नए लोकतांत्रिक दौर की शुरुआत बनेगा, या सेना की सत्ता वापसी की राह खोल देगा?
डिस्क्लेमर (Disclaimer)
यह ब्लॉग पोस्ट केवल सूचनात्मक उद्देश्य के लिए लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी समाचार घटनाओं पर आधारित है। राजनीतिक घटनाक्रम बदलते रहते हैं, इसलिए पाठक स्वयं आधिकारिक और ताज़ा स्रोतों से पुष्टि करें।